(शिशिर कुमार) गठबंधनों की राजनीति से अन्य दलों की सियासी चमक फीकी पड़ गई है। मतों का विभाजन कर कुछ सीटों पर जीत-हार का गणित बदलने में तो भूमिका दिखी लेकिन सत्ता की चौखट पर पहुंचने की खुद की तमन्ना ख्वाबों में ही रह गई।
बसपा, सपा, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, एसयूसीआई, सीपीआई एमएल समेत 35 राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं रजिस्टर्ड पार्टियों ने गत चुनाव में जिले की विभिन्न सीटों से अपने उम्मीदवार उतारे। लेकिन एक सीट से एक एसएचएस को छोड़ अन्य सबके उम्मीदवार वोट लाने में 4 अंकों में ही सिमट कर रह गए। एनडीए महागठबंधन के बाद मतदाताओं ने इन पार्टियों से ज्यादा निर्दलीय पर भरोसा जताया।
11 में से 2 सीट बोचहां, कांटी में निर्दलीय ने कब्जा जमाया। बसपा ने सभी 11 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा था। लेकिन औसत 2000 मत भी हर सीट पर नहीं मिले। चुनाव में तो सबने मतदाताओं को लुभाने की हर कोशिश की। मगर वे गठबंधनों के वोट में सेंधमारी नहीं कर सके। 9 सीटों पर सीधी टक्कर एनडीए और महागठबंधन के बीच हुई।
169 की जमानत जब्त हो गई
पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए, महागठबंधन और दो निर्दलीय उम्मीदवारों की बात छोड़ दें तो अन्य पार्टियों को मतदाताओं ने तवज्जो नहीं दी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 11 सीटों पर खड़े 192 उम्मीदवारों में से 169 की जमानत जब्त हो गई। कांटी को छोड़ अन्य सीटों पर सीधे मुकाबले में जीते और हारे उम्मीदवार ही जमानत बचा पाए।
कांटी में मुकाबला त्रिकोणीय होने से जीत-हार के अलावा तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार की भी जमानत बची। 23 उम्मीदवार के बाद नोटा को ही जिले में सबसे अधिक 32957 मत मिले। 11 सीटाें में सभी 192 उम्मीदवारों में सबसे अधिक और सबसे कम वोट मुजफ्फरपुर सीट के उम्मीदवार को ही मिले।
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