(भैरव लाल दास) 17 दिसंबर, 2004 को बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई। विधानसभा की 39 सुरक्षित सीट सहित 243 सीटों के लिए 50,063 मतदान केंद्रों पर 5 करोड़ 27 लाख मतदाताओं द्वारा यह मतादेश दिया जाना था कि बिहार की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी। पूरी दुनिया में बिहार एक ‘असफल’ और ‘अराजक राज्य’ के रूप में चर्चित हो चुका था। दिल्ली की डीटीसी की बसों में ‘बिहारी’ एक गाली बन चुकी थी।
मुंबई की फिल्मी दुनिया के निदेशक ‘जोकर’, दरबान या गरीब से ‘बिहारी स्टाइल’ में डॉयलॉग बोलवाते थे। कानून व्यवस्था, सड़क, बिजली, शिक्षा, अस्पताल आदि की गिरावट के कारण जनता ‘जंगल राज’ से ऊब चुकी थी। राजग का स्वरूप आकार ले चुका था। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव, खासकर महाराष्ट्र विधानसभा के परिणाम के कारण लालकृष्ण आडवाणी और बिहार प्रभारी अरुण जेटली के लिए यह बड़ी चुनौती थी।
नीतीश कुमार स्पष्ट संकेत दे चुके थे कि वे भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। केंद्रीय मंत्री के रूप में अच्छी छवि गढ़ने में नीतीश कुमार सफल रहे थे। राजग ने जंगल राज से मुक्ति का नारा दिया। जनता इसे हाथो-हाथ ले रही थी। भाजपा का सांगठनिक स्वरूप, खासकर लालू प्रसाद के मुखर विरोध के कारण जनता में राजग लोकप्रिय हो रही थी। के-2 यानी कोईरी, कुर्मी का पूरा-पूरा समर्थन नीतीश कुमार के पक्ष में होने के कारण उनकी स्थिति कमजोर नहीं थी।
कांग्रेस से मिल पासवान ने चुनाव को बना दिया त्रिकोणीय
उधर, सत्ता की चाल भांपने में माहिर रामविलास पासवान 1996 से ही केंद्र में मंत्री थे। रेल मंत्री की कुर्सी की दौड़ में लालू प्रसाद के बाजी मार ले जाने के कारण रामविलास पिछड़ गए थे और गुस्से में थे। अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी को अधिक प्रखर बनाते हुए पासवान और अन्य दलित जातियों के परंपरागत वोट बैंक के वे स्वयं को रहनुमा भी घोषित करना चाहते थे।
2004 में राजग से अलग होकर वह अपनी स्वतंत्र राजनीतिक ताकत आजमाना चाहे। रामविलास पासवान के अलग चुनाव लड़ने से अल्पसंख्यक मतदाताओं को जहां विकल्प मिलता, वहीं राजग और राजद के परंपरागत वोट बैंक में दरार भी पड़ सकती थी। कांग्रेस द्वंद्व में ही थी।
केंद्र में लालू प्रसाद का समर्थन लेना उसकी मजबूरी थी, लेकिन बिहार में वह लालू प्रसाद की बदनामियों से किनारा करना चाहती थी। इसलिए कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। रामविलास पासवान ने पहले तो अकेले लड़ने का निर्णय लिया, बाद में कांग्रेस का गठजोड़ हासिल कर चुनाव को त्रिकोणीय और दिलचस्प बना दिया। - क्रमश :
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