रविवार को मुहर्रम की दस तारिख है। मालूम हो कि मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। सामाजिक कार्यकर्ता और जिला मुहर्रम कमिटी के प्रवक्ता शाह मोहम्मद शमीम ने कहा कि देश में ताजिया रखने का सिलसिला मुगलकाल से चला आ रहा है। दरभंगा में ऐसा पहली बार होगा कि मुहर्रम पर ताजिये नहीं दिखेंगे।
इमामबाड़ों पर सूनापन छाया रहेगा। वैसे यहां ताजियादारी का पुराना इतिहास रहा है। जिला मुहर्रम कमिटी के रिकॉर्ड के मुताबिक 1936 से ताजियादारी के सभी सभी कार्यक्रम निरंतर होते रहे हैं। इस साल पहली बार दसवीं मुहर्रम यौम-ए-आशूरा पर ताजिया का प्रदर्शन, मिलान और अखाड़ों का जुलूस नहीं निकलेगा।
मोहल्ले व गांव के इमामबाड़ों पर नेयाज फातेहा कराई जाती थी
मुहर्रम के अवसर पर दरभंगा जिला के हर मोहल्ले व गांव में स्थित इमामबाड़ों पर नेयाज फातेहा कराई जाती थी, ताजिया रखे जाते थे। लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण को लेकर जिला प्रशासन के आदेश पर सहमति जताते हुए जिला मुहर्रम कमिटी ने सभी कार्यक्रम को स्थगित कर दिया।
जिला मुहर्रम कमिटी के अध्यक्ष सिबगतुल्लाह खान उर्फ डब्बू खान व महासचिव मो. कलीमुद्दीन उर्फ़ रुस्तम कुरैशी के मुताबिक तकरीबन 65 साल के बाद पहली बार हालात के मद्देनजर नवमीं और दसवीं का ऐतिहासिक मिलान को स्थगित कर दिया गया।
इंसान व इंसानियत की हिफाजात हो, कोरोना से मुक्ति मिले
जिला प्रशासन द्वारा मान्य तकरीबन डेढ़ सौ लाइसेंसशुदा अखाड़ों के जुलूस पर पाबंदी लगाई गई। ज़िला प्रशासन व सरकार के निर्देशो व पाबंदियों का सम्मान करने की अपील की गई। मुहर्रम कमिटी के महासचिव ने कहा कि अवाम के लिए यह दिन मायूसी भरा है क्योंकि पहली बार न तो मिलान और न ताजिया देखने को मिलेगा।
अपील किया है कि आप सब घरों में रहकर कर्बला के शहीदों के लिए इबादत और दुआ कीजिए। नेयाज व फातेहा दिलाएं, बच्चों को दास्तां ए कर्बला सुनाएं। दुआ करें कि दुनिया भर में इंसान और इंसानियत की हिफाजात हो, कोरोना से मुक्ति मिले।
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