आज बहुत दिनों के बाद अश्वनी का फोन आया। ठीक से आवाज नहीं आ रही थी। लग रहा था जैसे वह भावुक हो गया है। उसने कहा, ‘सर आज मेरा जन्मदिन है और मैं अभी इलाहाबाद से फोन कर रहा हूं’। मैं अभी वहीं खड़ा हूं जहां कभी मेरे दादाजी, पिताजी के साथ चाट बेचा करते थे। किस्मत का खेल देखिए। जिस शहर में मेरे दादाजी और पिताजी ने संघर्ष किया था।
वहीं आज मैं रेलवे में इंजीनियर हूं। यह सब आपके आशीर्वाद से ही संभव हुआ है। वह लगातार बोले ही जा रहा था। मैंने सिर्फ इतना ही जवाब दिया। अश्वनी आज तुम खुश हो यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस मुझे कभी-कभी याद करते रहना।
दिलीप कुमार सिंह के निरक्षर पिता एक सपना लेकर गांव से इलाहबाद आए थे। शाम को ठेले पर चाट बेचते थे। सोचा था कि खूब मेहनत करेंगे। बेटे को पढ़ाएंगे। और बेटा एक दिन कोई अच्छी नौकरी करेगा। बेटे को पढ़ने का शौक भी था, लेकिन न तो दिलीप कुमार को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ने का मौका मिला और न ही उनका कोई मार्गदर्शक था।
जैसे-तैसे थोड़ी पढ़ाई तो जरूर हुई पर नौकरी नहीं लगी। दिलीप कुमार और उनके सभी भाईयों की शादी हो गई। कुछ ही दिनों बाद घर में बंटवारा भी हो गया। चाट वाला ठेला दूसरे भाई ने ले लिया। दिलीप कुमार को कुछ भी हासिल नहीं हो सका। कुछ ही दिनों में जब दिलीप कुमार भुखमरी का शिकार होने लगे तब तीनों बच्चों और पत्नी के साथ वापस अपने गांव आ गए।
दिलीप कुमार ने गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। बाद में धीरे-धीरे ट्यूशन पढ़ाना ही आमदनी का जरिया भी बन गया। एक छोटे से गांव में ट्यूशन पढ़ाकर परिवार को चलाना बहुत मुश्किल था। बेटा अश्वनी बहुत छोटा था। पिता जब बच्चों को पढ़ाते थे तब आकर बगल में बैठ जाता। उस छोटी सी उम्र में भी बिना कुछ समझे घंटों बैठा रहता था। शांति से सबकुछ सुनता रहता।
यह सब देखकर दिलीप कुमार को लगने लगा था कि अश्वनी जरूर पढ़ाई में मन लगाएगा और कुछ अच्छा करेगा। अब अश्वनी का भी पढ़ने का समय आ गया था। पिता पढ़ाते थे और अश्वनी भी खूब मेहनत करता था। यहां तक कि अपनी कक्षा से आगे की कक्षाओं के भी सवाल हल कर लेता था। सबसे बड़ी बात थी कि छोटे से गांव में भी उसको कोई राह दिखाने वाला था।
धनाभाव के चलते जब किताबों की व्यवस्था नहीं हो पाती थी तब पिता अपने स्टूडेंट्स से पुरानी किताबें मांगकर अश्वनी को दे दिया करते थे। वह दसवीं बोर्ड में बहुत अच्छे अंकों से पास हुआ था। दिलीप कुमार एक शिक्षक थे सो सुपर 30 के बारे में तो उन्हें पता ही था। उन्होंने अश्वनी को सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट देने के लिए पटना भेज दिया।
सुपर 30 में आ जाने के बाद अश्वनी खूब मेहनत करने लगा। जब भी मौका मिलता सुपर 30 के दोस्तों के साथ फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथेमैटिक्स का खूब डिस्कशन करता। मुझे याद है कि एनआईटी में एडमिशन मिलने के बाद अश्वनी मुझसे मिलने मिठाई लेकर आया था। पढ़ाई पूरी होते ही उसकी नौकरी रेलवे में लग गई है।
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