2015 का बिहार विधानसभा का चुनाव। शुरू में ऐसा लग रहा था कि भाजपा का पलड़ा भारी है। इतने में आरएसएस की ओर से एक बयान आया कि आरक्षण की समीक्षा की जाएगी। लालू यादव ने इस लाइन को किसी मंत्र की तरह जपा। रिजल्ट सबके सामने है। यह बहस का विषय हो सकता है कि इस मुद्दे का रिजल्ट पर कितना असर रहा।
अब बात इस बार के बिहार चुनाव की। अब तक विपक्ष के पास बेरोजगारी थी। मुद्दे के रूप में भी और काम के रूप में भी। यूपी में दलित बेटी से बर्बरता। फिर उसकी मौत और उसके बाद उसी बर्बरता से पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार कराया । पड़ोसी राज्य की इस वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। जाहिर सी बात है, इसका असर बिहार में भी दिखा और आने वाले समय में ज्यादा दिख सकता है।
कारण…बिहार का चुनाव है। वर्तमान में सभी दलों में दलित नेताओं को आगे करने की होड़ है। चाहे जदयू में अशोक चौधरी को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाना हो या राजद में भूदेव चौधरी को पार्टी में शामिल कराकर 24 घंटे के भीतर उपाध्यक्ष बनाना। दलित वोटों को पक्ष में करने के लिए पड़ोसी यूपी में जनाधार वाली पार्टी बसपा से उपेन्द्र कुशवाहा का गठबंधन हो या पप्पू यादव का चंद्रशेखर आजाद रावण से।
सभी पार्टियों/ नेताओं की कोशिश 16 फीसदी के करीब दलित वोटों को पक्ष में करने की ही है। ऐसे में इसी यूपी में दलित बेटी से बर्बरता…वो भी इसीलिए कि वह दलित है…राजनीतिक मुद्दा न बने, ये संभव नहीं लगता। वो भी ऐसे में जब इस बेटी के परिवार से मिलने जा रहे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को न सिर्फ रोका गया, बल्कि यूपी पुलिस ने राहुल का कॉलर पकड़ा और धक्का मारकर गिरा तक दिया। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस के लिए तो दलित बेटी से कम बड़ा मुद्दा राहुल गांधी को गिराना भी नहीं है।
बिहार चुनाव में राजद से तनातनी के बाद अलग पड़ रही कांग्रेस के लिए ये पूरा घटनाक्रम संजीवनी सा साबित हुआ। न सिर्फ महागठबंधन, देश में पूरा विपक्ष एक सुर हो गया। राजद-कांग्रेस-वामदल तीनों ने भाजपा को दलित विरोधी बताया। यहां तक लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान और तीसरा-चौथा मोर्चा बनाने वाले पप्पू यादव और उपेन्द्र कुशवाहा भी इस मुद्दे पर विपक्ष के पक्ष में दिखे।
लेकिन सभी के बयानों में एक फार्मूला है, जिसे वे अपनी पार्टी के गणित में फिट करना चाह रहे हैं। बिहार की जनता का गुणा-भाग भी किसी राजनेता से कम नहीं है। ऐसे में इस तरह के गंभीर मुद्दे पर राजनीति के उलटा पड़ने की संभावना अधिक है। दुष्यंत कुमार ने शायद ये शेर इन्हीं नेताओं के लिए ही लिखा होगा :-
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आपके भी खून का रंग हो गया है सांवला
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