आज 1 दिसंबर को 'विश्व एड्स दिवस' मनाया जा रहा है। इस गंभीर बीमारी से लड़ रहे लोगों की हौसला आफजाई का दिन है। लेकिन यह काम तब असंभव हो जाता है, जब एड्स पीड़ितों की देखभाल को मिलने वाली सरकारी सहायता राशि अपनी सरकारी चाल चलने लगती है। बिहार में एचआईवी पॉजिटिव मरीजों को मिलने वाली 'बिहार एड्स शताब्दी योजना' की राशि फरवरी के बाद से नहीं मिली है। यानी इस साल यह राशि नौ माह से नहीं मिली है। इस योजना के तहत वैसे एचआईवी मरीजों को प्रतिमाह पंद्रह सौ रुपए की राशि मिलती है जो एआरटी सेंटर से दवा लेते हैं। समाज कल्याण विभाग से यह राशि एड्स कंट्रोल सोसाइटी को जाती है और फिर मरीजों के बैंक खाते में। 27 नवंबर 2019 से यह राशि ऑनलाइन भेजी जा रही है।
क्यों दी जाती है राशि
यह राशि इसलिए दी जाती है कि एचआईवी पॉजिटिव मरीज ठीक से डाइट ले सकें। एचआईवी मरीजों को एआरटी सेंटर पर दवाएं तो मुफ्त मिलती हैं। साथ ही 1500 रुपए प्रतिमाह देने के पीछे का मकसद यह है कि काम-काज नहीं मिलने पर इस राशि से वे अपना जीवन- यापन कर सकें। अभी बिहार में 53 हजार ऐसे मरीज हैं जो रेगुलर दवा ले रहे हैं। यह राशि 18 साल से ऊपर के एचआईवी पॉजिटिव को दी जाती है। इससे कम उम्र के लोगों को परवरिश योजना के तहत एक हजार रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं।
विभाग-सोसाइटी के बीच कोआर्डिनेशन नहीं
'बिहार नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी एड्स' सोसाइटी के अध्यक्ष ज्ञानरंजन से दैनिक भास्कर ने बात की। वे बताते हैं कि समाज कल्याण विभाग और एड्स कंट्रोल सोसाइटी के बीच कोआर्डिनेशन का अभाव है। इसी वजह से फरवरी से मरीजों को योजना की राशि नहीं मिली है। एक तो कोरोना की वजह से कइयों का रोजगार छिन गया है, उस पर योजना की राशि नौ महीने से नहीं मिली। इनकी परेशानी को बयां कर पाना मुश्किल है।
चुनाव आचार संहिता का बहाना
एड्स कंट्रोल सोसाइटी में सी.एस.टी. (केयर सपोर्ट ट्रीटमेंट) के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. राजेश कहते हैं कि अक्टूबर तक की राशि खाता में भेजी जा रही है। मरीजों के एफिडेविट मिलने में देर हुई है. चुनाव आचार संहिता भी वजह है। यह राशि समाज कल्याण विभाग से आती है।
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