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Wednesday, November 11, 2020

पांच साल से कम उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा निमोनिया होने का रहता है खतरा

सर्दी के आगमन के साथ ही शिशुओं में निमोनिया से पीड़ित होने की सम्भावना भी बढ़ रही है। निमोनिया छींकने या खांसने से फ़ैलने वाला संक्रामक रोग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोध बताते हैं कि निमोनिया से ग्रसित होने का खतरा 5 साल से कम उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा है। दुनिया भर में होने वाली बच्चों की मौतों में 15 प्रतिशत केवल निमोनिया की वजह से होते हैं।

यह रोग शिशुओं के मृत्यु के 10 प्रमुख कारणों में से एक है जिसका कारण कुपोषण और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता भी है। प्रत्येक वर्ष 12 नवम्बर को समुदाय को इसके प्रति जागरूक करने के लिए विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। “स्टॉप निमोनिया, एव्री ब्रेथ काउंट्स” को इस वर्ष की थीम रखा गया है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. आरकेपी साहू ने बताया यह रोग बैक्टीरिया, वायरस या फंगस से फेफड़ों में संक्रमण से होता है। एक या दोनों फेफड़ों के वायु के थैलों में द्रव या मवाद भरकर उसमें सूजन पैदा हो जाती है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है।

बच्चों को सर्दी में निमोनिया होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है जो जानलेवा भी हो सकता है। सुखद बात यह है की इस गंभीर रोग को टीकाकरण द्वारा पूरी तरह रोका जा सकता है। इसलिए अपने बच्चों को सम्पूर्ण टीकाकरण के अंतर्गत सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर निःशुल्क उपलव्ध पीसीवी का टीका जरूर लगवाएं। पीसीवी या न्यूमोकॉकल कॉन्जुगगेट वैक्सीकन का टीका शिशु को दो माह, चार माह, छह माह, 12 माह और 15 माह पर लगाने होते हैं। यह टीका ना सिर्फ निमोनिया बल्कि सेप्टिसीमिया, मैनिंजाइटिस या दिमागी बुखार आदि से भी शिशुओं को बचाता है।

लापरवाही शिशुओं के लिए हो सकती है खतरनाक

कोरोना का खतरा पूरी तरह टला नहीं है। ऊपर से सर्दी भी बढ़ रही है। ऐसे में आपके शिशुओं को कई तरह के शीतजनित रोग हो सकते हैं। ध्यान रखें और यदि शिशु में कंपकपी के साथ बुखार हो, सीने में दर्द या बेचैनी, उल्टी, दस्त सांस लेने में दिक्कत, गाढ़े भूरे बलगम के साथ तीव्र खांसी या खांसी में खून, भूख न लगना ,कमजोरी, होठों में नीलापन जैसे कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। ये निमोनिया के संकेत हैं जिसमें जरा सी भी लापरवाही आपके शिशु के लिए खतरनाक हो सकती है।

पोषण और सफाई पर दें ध्यान

डॉ. साहू ने बताया निमोनिया एक संक्रामक रोग है इसलिए भीड़-भाड़ और धूल-मिट्टीवाले स्थानों से बच्चों को दूर रखें, जरूरत पड़ने पर मास्क और सैनिटाइज़र का उपयोग करवाएँ। समय-समय पर बच्चे के हाथ धुलवाएं। उन्हें प्रदूषण और धूम्रपान से बचाएं ताकि सांस संबंधी समस्या न रहें। रोग-प्रतिरोधक क्षमता से बीमारी से लड़ना आसान होता है इसलिए 6 माह तक के शिशुओं को पूर्ण रूप से स्तनपान और उससे बड़े शिशुओं को पर्याप्त पोषण दें।



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