तिलकामांझी हटिया राेड से अतिक्रमण हटाने के लिए एक बार फिर से नगर निगम की स्थाई समिति की बैठक में निर्णय लिया गया है। सप्ताहभर के अंदर अतिक्रमण हटाने की बात की जा रही है। लेकिन चाैंकानेवाला सच यह है कि नगर निगम प्रशासन काे अब तक यह पता ही नहीं है कि वहां की सड़क कितनी लंबी व चाैड़ी है। कितनी जमीन पर कब्जा है। कितने हिस्से में स्थाई और कितने में अस्थाई अतिक्रमण है।
इसका खुलासा तब हुआ कि निगम के जिम्मेदाराें से इसके बारे में पूछा गया। मेयर, उप नगर आयुक्त से लेकर अतिक्रमण शाखा के प्रभारी तक काे अब तक इसकी जानकारी नहीं है कि कितनी जमीन अतिक्रमित है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब निगम की अतिक्रमण शाखा के साथ टीम वहां कब्जा हटाने जाएगी ताे मुश्किलाें का सामना करना पड़ेगा।
वार्ड 32 के पार्षद हंसल सिंह भी सवाल उठाए हैं कि स्थायी समिति की बैठक में निर्णय ताे लिया गया है, पर निगम कितने दिनाें में इसे हटाएगा, यह कहना मुश्किल है। अतिक्रमण शाखा के नए प्रभारी अजय शर्मा ने बताया कि दो दिनों के अंदर अतिक्रमण हटाने का प्लान बना लेंगे।
जानिए, कितनी जमीन अतिक्रमित है, जिसे हटाने में नगर निगम प्रशासन काे झेलनी पड़ेंगी मुश्किलें
1. आधा किमी राेड पर कब्जा : तिलकामांझी हटिया राेड में आधे किलाेमीटर की 30 फीट चाैड़ी सड़क में दाे से तीन फीट का नाला, पांच फीट पर सब्जी, ठेला, तीन फीट पर बाइक लगी रहती है। जबकि चार फीट सड़क पर कई स्थानाें पर डाॅक्टराें व अन्य दुकानदाराें की कारें लगी रहती है। इसके बाद जाे जगह बचती है, वहां बिल्डिंग मैटेरियल व दुकानदार अपने शेड आगे बढ़ाकर लगा लेते हैं। कुछ लाेगाें ने निगम की जमीन पर पक्का निर्माण भी कर लिया है। यानी 20-25 फीट की सड़क पर अतिक्रमण व बाकी बचे पांच फीट की सड़क ही लाेगाें के चलने के लिए बची है।
2. तीन दिन सबसे ज्यादा अस्थाई कब्जा: करीब दाे माह पहले भी इस सड़क से अतिक्रमण हटाया गया था, लेकिन कुछ दिनाें के बाद फिर पहले जैसी स्थिति बन गई। तीन दिन सबसे ज्यादा जाम रहता है। साेमवार, बुधवार और शुक्रवार काे यहां हाट लगती है। सब्जी की दुकानें सड़काें पर अस्थाई रूप से कब्जा कर लेती है। ऐसे में पैदल चलना भी मुश्किल हाे जाता है।
कब्जा, जाम व भीड़ से इनलाेगाें काे हाेती है परेशानी, मरीज डॉक्टर तक नहीं पहुंच पाते
1. गर्भवतियाें काे क्लिनिक तक जाने में दिक्कत: सबसे ज्यादा परेशानी इस इलाके में नर्सिंग हाेम व क्लीनिकाें में आनेवाले मरीजाें से लेकर डाॅक्टराें व कर्मचारियाें काे हाेती है। भीड़ की वजह से इमरजेंसी केस वाले मरीज डाॅक्टर तक नहीं पहुंच पाते हैं। खासताैर पर गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए डाॅ. अर्चना झा, डाॅ. मनाेज राम, डाॅ. अनुपमा सिन्हा के यहां जाते हैं। ये सभी केस इमरजेंसी हाेते हैं। पर हमेशा क्लीनिक तक पहुंचने में अतिक्रमण, जाम व भीड़ की वजह से मरीजाें काे देरी हाेती है।
2. एक्सीडेंटल केस में भी देरी: इस राेड में हड्डी के डाॅ. साेमेन चटर्जी, डाॅ. मनाेज गुप्ता, सर्जन व हड्डी का इलाज करनेवाले डाॅ. जेपी सिन्हा के यहां सड़क दुर्घटना में घायल या घराें में किसी तरह गिरने से हड्डियाें के टूटने के बाद मरीज जाते हैं। पर ऐसे मरीजाें की गाड़ियां भी अतिक्रमण की वजह से देर से पहुंचती हैं।
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