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Sunday, November 8, 2020

धनतेरस से 5 दिनों तक की जाती है महालक्ष्मी की पूजा

धन की देवी माँ महालक्ष्मी की पूजा, गणेश, इन्द्र व कुबेर के साथ धनतेरस से आरंभ कर भैया दूज तक 5 दिनों तक की जाती है। इस वर्ष धनतेरस 12 नवंबर गुरूवार को एवं दीपों का त्योहार दीपावली 14 नवम्बर को मनाया जाएगा।

धनतेरस व दीपावली को विशेष रूप से पूजन द्विस्वभाव लग्नों में करने का महत्व है। सूर्य मंदिर के पुजारी आचार्य आशुतोष पाण्डेय ने बताया कि विशेषकर धनतेरस से लेकर दीपावली तक महालक्ष्मी का पर्व विशेष फलदायी होता है। इस दिन धन के देवता कुबेर व देवताओं के चिकित्सक धनवंतरी महाराज की भी पूजा होती है।

धनतेरस से दीपावली पूजन का क्रम शुरू हो जाता है। माँ लक्ष्मी, गणेश, कुबेर के साथ धनवंतरी के धनतेरस से दीपावली तक का पूजन का क्रम शुरू हो जाता है। जो भैया दूज तक चलता है। शास्त्री ओम तिवारी ने बताया कि धनतेरस से दीपावली तक किसी भी शुभ समय में विशेषकर स्थिर व द्विस्वभाव लग्नों में पूजन व खरीदारी कर सकते हैं।

पूजन का शुभ मुहूर्त : 12 एवं 14 नवंबर को दोनों दिन कुम्भ व मीन लग्न दिन में 1:50 मिनट से शाम 4 बजे तक। वृष एवं मिथुन लग्न शाम 5 बजे से रात्रि 9 : 30 मिनट तक। सिंह लग्न - रात्रि 11: 45 से रात्रि 2 बजे तक रहेगा। इस दिन क्रमशः हस्त, चित्रा एवं स्वाति, विशाखा नक्षत्र संपूर्ण रात्रि तक व्याप्त रहेगा। इस प्रकार धनतेरस के अगले दिन भी सुबह पूजन का विशेष मुहूर्त रहेगा। प्रदोष काल का समय गृहस्थ के लिए अपने घर की पूजा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। धर्म सिंधू के अनुसार अपराह्न प्रदोषकाल एवं मध्य रात्रि में धनतेरस व दीपावली का पूजन विशेष महत्व है।

प्रदोषकाल में पूजा-अर्चना करें छात्र

आईटी, मीडिया, फिल्म व टी.वी. इन्डस्ट्री, मैनेजमेंट व जाॅब करने वाले शुक्र प्रधान लग्न वृष में पूजा करें सरकारी सेवा के लोग अधिकारी और न्यायिक सेवा के लोग भी वृष लग्न में पूजा करें। तांत्रिक व पैतृक स्थिर व्यापारी सिंह लग्न महानिशीथ काल में या सामान्य चौघड़िया में भी विशेष लाभ हेतु पूजा कर सकते हैं। राजनीतिज्ञ आमावस्या की रात्रि में महानिशीथ काल में तांत्रिक व पारंपरिक पूजा कर सकते हैं।

इन मंत्रों का जप करना होगा फलदायक : संकट नाशन गणेश स्त्रोत, गणपति अथर्वशीर्ष से गणेशजी का एवं ॐ श्री ह्वीं कमले कमलाये प्रसीदं प्रसीदं श्री ह्वीं श्री ॐ महालक्ष्मै नमः। मंत्र से या श्रीसूक्त से माँ लक्ष्मी का पाठ, जप, समस्त पूजन, हवन, आरती , इत्यादि संपादित करें। इसके साथ हीं सभी दरवाजे पर स्वास्तिक बना कर दीप जलाएं।



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